मेरे मन का रावण's image
Poetry2 min read

मेरे मन का रावण

Prince TulsianPrince Tulsian October 12, 2022
Share1 Bookmarks 48536 Reads2 Likes
नमस्कार मित्रों. हम रावण बध मनाते है पर आज की परिस्थितियों को देखते हुए यें लगता है की हम रावण का वध करने के लायक नहीं है और इसी बात को मैं ने कुछ पंक्तियों में बोलने का प्रयास किया है .. 

ना वायु से, ना अग्नि से 
ना बर्छी, तीर कमान से 
नहीं मारेगा आज का रावण 
किसी भी शूरवान बलवान से ..

तीर तो बहुत चलाया मैंने
साध साध निशाने को 
मारा बस एक पुतले को पर 
भूला सही निशाने को ..

चलता एक तीर उस कलीख-भाव पर
बैठा है जो घात लगाए 
मन में, तन में, घुस कर बैठा 
जाने कितने पाप कराए ..

एक तीर आँखो की परतों पर 
जो मैं ज़रा चला पाता
हट जाता वो भाव विश का 
जो दृष्टि में पाले जाता  ..

क्यू मारू उस पुतले को जो 
भावहीन सा खड़ा वहाँ
क्यू ना मार दूँ अपने छल को 
जो तन को है सड़ा रहा ..

रावण था पापी जग जाने 
पर शास्त्रों का ज्ञाता था 
विनाशकाल में बुद्धि फिर गयी 

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts