मार्च,
ऋतुओं का बरसना आरम्भ हो चुका हैं वह कभी भी मेरे आंँगन में बरसती होंगी। घड़ी की सुई इन्तजार के साथ अपने जीवन के अंतिम परिभ्रमण में आती ही होगी। पेड़ों पर पलाश अपने पैर जमाता ही होगा। खिड़की में उसकी खुशबू महकने को उत्सुक होगी। जूते कीचड़ की ओर आकर्षित होते होंगे। पलाश की छाया मुझे अपने अंदर समेटने के लिए तत्पर होगी।
हीरे की उत्कृष्टता देखनी हो तो मैं सबसे पहले पलाश के साथ देखना चाहता हूंँ लेकिन सिर्फ सफेद पलाश के साथ। पलाश के फूल में कोई कैसे भेदभाव कर पाता है लेकिन यह मुझे उस सफेद पलाश को देखने पर पता चला, जब उसकी सुगन्ध ने मुझे मेरी खिड़की के पास खींचा। यह पलाश मेरे लिए सकारात्मक रहा।
पिताजी ने जब यह आंँगन में लगाया तब सिर्फ बताया कि यह सुगन्धित है लेकिन कल्पनाओं के परे, मैं इसमें तब तक पानी देता रहा जब तक पिताजी अपने हाथों से मुझसे यह करवाते लेकिन पिताजी के जाने के साथ मुझे यह उतना ही नापसंद था जितना कि किसी बच्चे को अपना स्कूल।
पिताजी ने कहा था "आकर्षक चीज़ें और गूढ़ व्यक्तित्व पाथेय के वे कण है जिन्हें समझने में हमें जीवन दान करना पड़ता है"। मैं पिताजी की बातों से अक्सर ऊँघता रहता। आखिर नादान बच्चे और मरा हुआ मन जब कोई कार्य किया करते है तो उनसे हुई गलतियांँ हमें एक सीख देती है।
पिताजी के लिए नादान बच्चा पलाश था और मरा हुआ मन 'मैं' स्वयं। मैं ऋतुओं से कुछ नहीं सीख पाया, वे किस तरह आती हैं जीवन में रंग बिखेरती हैं, चंचल मन को विकसित क
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