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कब जुडोगे कान्हा तुम,
मेरे अधूरे फसाने मैं।
तेरे दीद को तरसी कान्हा,
मै तो इस बरसाने मैं।
एक बूंद को प्यासी कान्हा,
अपने इस वीराने मैं ।
बिरहा की अग्नि से,
कब तक ऐसी चलूंगी मैं।
आखिर तुमको आना होगा,
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