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आओ एक बार फिर से तुम्हें देख लू, क्या पता ये सावन फिर कब मिले ।

प्रवीण मुन्तजिरप्रवीण मुन्तजिर August 29, 2021
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आओ एक बार फिर से तुम्हें देख लू,

क्या पता ये सावन फिर कब मिले ।


अपने तन की खुशबू को दे दो जरा,

क्या पता ये मधुवन फिर कब मिले ।


तेरी आंखो का काजल बन के रहू,

तेरे नैनों की अठखेलिया देखता रहूं।


आओ एक आखरी चुंबन दे दो जरा,

क्या पता ये बहार फिर कब मिले।

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