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इस रूढ़वाद और जात पात के बंधन से मैं परे प्रियतम,,
कुछ मेरी भी परेशानी है कोई उसका हल भी करे प्रियतम।।
मैं खुद ही खुद में घुटूं कब तक,,
सब आगे गए मैं रुकूं कब तक??
बिन धूप हवा पानी के अब खिली खिली दिखूं कब तक??
बिन सरवर बिन झील अब कैसे कोई गगरी भरे प्रियतम??
अब मेरी खातिर भी कोई मुझसा बदलाव करे प्रियतम।।
हिम्मत न है मुझमें मैं तो चलते चलते गिर जाऊंगी,,
जिन रास्तों से गुजरी हूं आज उन्ही पे कल फिर आऊंगी,,
कितने ज़ख्म यूंही छिले पड़े कितने है घाव हरे प्रियतम,,
अब लोक लाज सब छोड़ दूं मैं
कब तक ऐसे हम डरे प्रियतम??
कुछ मेरी भी परेशानी है कोई उसका हल भी करे प्रियतम।।
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