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विरासत के हीरों का सजदा मुझे अच्छा नहीं लगता,
मासूमियत और नादानी का ये पर्दा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
इन्हीं सिलसिलों से खफ़ा हैं मुझसे सुबह-ओ-शाम,
विष पिलाता यह मयकदा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
लिपटा है लिबास की तरह रुह से मेरी,
मेरा और अतीत का राब्ता मुझे अच्छा नहीं लगता।।
जब पूछेंगे वो मुझसे सवाल कड़वे तो कहूंगा,
आपके सवालों का इरादा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
हालातों के शतरंज में चुप है मेरे अरमानों की आवाज़,
की शोर मचाता ये प्यादा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
मुझसे छीन लेता है मेरे मौकों की तस्वीर,
वक्त नाम का ये शहज़ादा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
और मुझे नहीं कोई मतलब इश्क से, सुकून से,
जब मिले हक से ज्यादा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
तोड़ देना ही लाज़मी होगा इसको प्रतीक,
दर्द का ये कच्चा घरौंदा मुझे अच्छा नहीं लगता।।
- प्रतीक जैन
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