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मैं खड़ी बाजार,
राह, गली, चौराह पर
मंदिर, मस्जिद, गिरजा दर
तन मन वसन मलिन
रुग्ण, जीर्ण, शीर्ण
झुकी बुझी शुष्क आँखें,
बुझे तन मन से,
आते जाते गुजरने वाली
हर तीक्ष्ण नजरों से,
करूणा की आस लगाती,
हाँ, मैं खड़ी बाजार।
मैं खड़ी बाजार,
बीच शहर की रौनक पर,
पब, बार, सराय अंदर
सज संवर मुस्काती
मय भरी प्याले की अधर,
चमकती मदमाती नयनों से,
आसीन, आने-जाने वाले
हर नजरीश की,
आँखों की शोभा बन,
नव-जीवन की संचार भरती,
मैं बनी बाजार की शोभा।
प्रेमवती मुस्काती,
नयन अचकाती,
प्रेमपाश की फांस डालती,
मैं नयनाभिरामी बनी,
हर कामिनी नजरों से कुचलाती,
छद्म प्रेम की धारा
राह, गली, चौराह पर
मंदिर, मस्जिद, गिरजा दर
तन मन वसन मलिन
रुग्ण, जीर्ण, शीर्ण
झुकी बुझी शुष्क आँखें,
बुझे तन मन से,
आते जाते गुजरने वाली
हर तीक्ष्ण नजरों से,
करूणा की आस लगाती,
हाँ, मैं खड़ी बाजार।
मैं खड़ी बाजार,
बीच शहर की रौनक पर,
पब, बार, सराय अंदर
सज संवर मुस्काती
मय भरी प्याले की अधर,
चमकती मदमाती नयनों से,
आसीन, आने-जाने वाले
हर नजरीश की,
आँखों की शोभा बन,
नव-जीवन की संचार भरती,
मैं बनी बाजार की शोभा।
प्रेमवती मुस्काती,
नयन अचकाती,
प्रेमपाश की फांस डालती,
मैं नयनाभिरामी बनी,
हर कामिनी नजरों से कुचलाती,
छद्म प्रेम की धारा
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