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ऐ वक़्त !
यूँ न मुँह फेर मुझसे,
क्यूँ इतना शर्मिंदा है !
दे दे कुछ और ज़ख़्म
अभी हम ज़िंदा हैं।
~अम्बष्ठ
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ऐ वक़्त !
यूँ न मुँह फेर मुझसे,
क्यूँ इतना शर्मिंदा है !
दे दे कुछ और ज़ख़्म
अभी हम ज़िंदा हैं।
~अम्बष्ठ
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