
कि दिल में कुछ अरमान लिए, आंखो ने जो सपने देखे
मै भी मुम्बई शहर आ गया, ख्वाइशों को पूरा करने।
अज्ञात था उन नियमों से, जहाँ बाहरी लोगो की जगह नही
काबिलों को मोका न दो और कहते तुम कामयाब नही।
सपनो का शहर कहते तुम, यहाँ हुनर की कद्र नही।।
हाँ खाना खा लिया माँ, अभी शूटिंग मे व्यस्त हूँ
यही कह के फ़ोन रख देता हूँ।
मारता हुँ खुद को हर रोज़ दफ़न करता हूँ
टूट गया हुँ अंदर से, था इतना पहले कमज़ोर नही।
सपनो का शहर कहते तुम, यहाँ हुनर की कद्र नही।।
वो समय अलग था जब तालियाँ गूँज उठा करती थी
एक दिन तू स्टार बनेगा, जनता यही कहा करती थी।
आज सवालों से भरा वॉट्सएप्प मेरा, जिनका कोई जवाब नही
दिल कि बातें कहुँ भी किस्से, यहाँ समझने वाले लोग नही।
सपनो का शहर कहते तुम, यहाँ हुनर की कद्र नही।।
एहसास हुआ अब, क्यूँ वो सब सरकारी नौकरी पे मरते थे
आईआईटियन दोस्त मेरे जब ग्रुप डी का फॉर्म भरते थे।
जाना चाहता हूँ घर वापस, लकिन बनना उनपे बोझ नही
क्या अपना लेंगे वो, जिन्होने किया कभी सपोर्ट नही।
सपनो का शहर कहते तुम, यहाँ हुनर की कद्र नही।।
अब फूलने लगती है साँसे जब कश सिगरेट का लेता हूँ
कहने को नब्ज़ चल रही, अंदर से कब का मर चुका हूँ।
बेच दिया ज़मीर इन्होंने, अब पड़ता इनको फर्क नही
हम जैसे अपनी जान गवाते क्यूँ अपना कोई वजूद नही।।
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