
निंदिया रानी,क्यों तू मुझसे आंख चुराए,
सारी रात मेरी आंखों ही आंखों में कट जाए।
चांद क्यों हंस रहा, यहतारों से बात करती ,
वह तो थक कर सो जाते, और मेरी सुबह हो जाती।
तू इनसे तो मिलती-जुलती, मुझसे क्यों दूर भागती।
पूरी रात तुझे पुकारूं, आंख मलमल तेरा रस्ता निहारुं।
रात मेरी जम्हाई लेती, तकिए के पल्लू से लिपट जाती,
रजाई खींचतान मुंह पर ढकते ,करवट बदलते बीत जाती।
विचार जो दुनिया से घूम कर आते,मेरे मस्तिष्क में घर बनाते,
निंदिया नहीं आएगी आंखों में ,यह कहकर उनको दूर भेजती।
साथ रात और निंदिया का, जैसे घाघरा चोली,
इन आंखों में ठहर तू ,यूं न खेलआंख मिचौली।
क्यों करें यूं मुझसे छल ,याद दिलाऊं तुझे तेरा बल,
अनिद्रा जो लाए कई बीमारी ,ह्रास कर दे स्मृति सारी,
दिन भर की थकान से दे मुक्ति, भरती तू शरीर में स्फूर्ति।
थोड़ा तू मेरा आदर करती, मेरी उम्र का ध्यान करती,
क्षीण हुआ बल मेरा, नहीं अब मैं तरुणी,
कहां छिपी तू बैठी, मेरी रात की हे! तरणी।
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