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चढ़ी नहीं मैं शिखर ,

पर नहीं हूं मैं सिफर,

बुद्धिमान खुद को कहती नहीं,

मूर्खों की कतार में खड़ी नहीं।

मूक मैं हो गयी ,

बोलने के लिए मन मचल गया।

प्रसिद्धि का ख्वाब नहीं,

गुमनामी बर्दाश्त नहीं।

जुगनू सी चमक रही,

चमक रही, फिर खो गयी।

चांद सी बदल रही ,

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