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ये जो मज़नू हज़ार नज़र आते है,
बस कुछ पल के यार नज़र आते है।
रख देते है मुहब्बत की दुनियाँ में कदम,
वफ़ा की गलियों से कतराते नज़र आते है।
इन्हें क्या मालूम वफ़ा के मायने,
इश्क़ हर रोज आज़माते नज़र आते है।
ग़र टकरा जाये इनसे कोई सच्चा हमदम,
आगे बढ़ने के तमाम किस्से समझाते नज़र आते है।
मिल जाये चाँद और चाँदनी जैसी भी कोई हक़ीक़त,
ये सितारों में ही उलझे हुए परेशाँ नज़र आते है।
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