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फागुन में सब घर है आये
साजन! तुम फिर नहीं आये
सखी सहेली मुझे चिढ़ाये
तुम्हारे साजन फिर नहीं आये।
सब सखी करें हँसी ठिठोली
निज साजन संग खेले होली
सासू ननद भी ताना मारे
बहू तुम्हीं हो नखरीली।
उनको कैसे मैं समझाऊं
बदमाशी तुम्हारी क्या बतलाऊं
चलते हो तुम सब चालाकी
नखरीली बस मैं कहलाऊं।
अब ना सुनूंगी कोई बहाना
मैं भी चली बाबुल के घराना
सोच लो साजन! सारी बातें
पड़ जाये ना तुमको पछताना।
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