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"ज़माना 'भाव' से 'तर्कों' की चौखट आ गया है अब"
नहीं लिखता है ख़त कोई किसी क़ागज़ पे स्याही से
हमें मोबाइल पे उंगली चलाना आ गया है अब।
मोहब्बत ‘हाय’ से चलकर ठहरती ‘बाय’ के दर पर
ज़माना "भाव" से "तर्कों" की चौखट आ गया है अब।
वो जज़्बातों में खो जाना वो पहरों की
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