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Romantic PoetryPoetry2 min read

'तुम्हीं सृजन तुम सृष्टि बोलो'

Pradeep Seth सलिलPradeep Seth सलिल November 26, 2021
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'तुम ही सृजन तुम सृष्टि, बोलो,

ओ! कलिका तुम भी कुछ बोलो'।




तुम ही सृजन तुम सृष्टि, बोलो,

ओ! कलिका तुम भी कुछ बोलो।


नगरों में कुछ हिस्सा पाया,

अंतरिक्ष है अभी बकाया,

हवा, उजाला, भंवरा, उपवन

सांझा सरमाया लघु जीवन,

सभी परस्पर पूरक बोलो

ओ! कलिका तुम भी कुछ बोलो।


सदियों से जाने अनजाने

जन्म लिया मिट गईं अजाने,

कभी अकेले रूप नगर में

इठलाईं बचपनी उमर में,

किन्तु मूक बनीं क्यों बोलो

ओ! कलिका तु

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