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दिन भर इक ख़ुमारी सी लगती है,
कमरे मे कोई छवि तुम्हारी सी लगती है;
ऐसा नशा तो मयखानों में भी नहीं मिलता,
हालत अपनी किसी नफ़सियाती बीमारी सी लगती है।
कौन जीना चाहता है तन्हा इस दौर मे,
ज़िंदगी की सरपट इस भाग-दौड़ में;
मै बस रह जाऊंगा तन्हा और पीछे भी,
यही किस्मत हमारी सी लगती है।
नोट पर नंबर देखना सबको भाता है,
बाज़ारो में ख़ामोशी सुनना, क्या किसी को आता है?
सिक्कों के इस झंकार की चा
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