
Share0 Bookmarks 99 Reads0 Likes
जिसका मैं दीवाना था,
कहाँ मुझे पहचाना था।
बदन हवेली था उसका,
मैं भी इक तहख़ाना था।
तूफ़ानों की आँखों में,
झाँका तो वीराना था।
ज़िद थी उसकी मैं ठहरूँ,
मेरा कहाँ ठिकाना था।
सौदा था सो टूट गया,
रिश्ता किसे निभाना था।
नई कहानी थी उसकी,
मैं क़िरदार पुराना था।
देहरो-हरम थे दूर बहुत,
पास मगर मयख़ाना था।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments