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दो गुटों में है बटें या दुश्मनी का वार है,
क्षत विक्षत मृत है पड़े चहुं और हाहाकार है,
शक्ति के बल से वो बनना चाहते बाहुबली,
काल की है मार या कलयुग की कोई चाल है।
ना दोष जन मानस का है पर युद्ध में जा वो खड़े,
फिर हार झोला वो उठा कहीं और शरणार्थी बने,
कुछ शासकों के मन की ईर्ष्या से उठी चिंगार है,
है आंख बंद या बहरे है सुनाती ना चीख पुकार है
रूस ये चाहे के पास उसके ना दुश्मन अड़े,
उसकी एवज में भले मृतकों के शव पैरो पड़े,
यूक्रेन को बकरा बना, यू एस है डंका बोलता,
उसको बना के ढाल रिश्तों में जहर है घोलता
अब है कहां जब चीखता यूक्रेन का साम्राज्य है,
या ये कहें की झांसे में फस जाना ही दुर्भाग्य है,
स्वतंत्र होकर देश क्यूं स्वनिर्णय ही न ले सके,
कमजोर देशों को दबा भला क्या ही प्रतिष्ठा मिले
सब एक से है बात ये उनको नही स्वीकार्य है,
पर दबदबे की होड़ में युद्ध व्यर्थ है बेकार है,
जो तू करे औरों के संग क्या खुद कभी सह पाएगा,
यूं दूसरो के नाश से रूस महाशक्ति बन पायेगा?
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