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दो गुटों में है बटें या दुश्मनी का वार है,
क्षत विक्षत मृत है पड़े चहुं और हाहाकार है,
शक्ति के बल से वो बनना चाहते बाहुबली,
काल की है मार या कलयुग की कोई चाल है।

ना दोष जन मानस का है पर युद्ध में जा वो खड़े,
फिर हार झोला वो उठा कहीं और शरणार्थी बने,
कुछ शासकों के मन की ईर्ष्या से उठी चिंगार है,
है आंख बंद या बहरे है सुनाती ना चीख पुकार है

रूस ये चाहे के पास उसके ना दुश्मन अड़े,
उसकी एवज में भले मृतकों के शव पैरो पड़े,
यूक्रेन

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