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स्याही लगा इन आंखों की लाली न छिपाया करो,
कभी डूबने दो हमें इस दर्द में नज़रे तो मिलाया करो
माना की नही हम काबिल अब वफाओ के तेरी,
अपनी नैकियत के चलते ही सही कभी मिलने आया करो
उम्र भर भला कहां ही पुकार पाएंगे हम तुम्हे,
कभी तो अपनी नजरो से गुरुर का पर्दा हटाया करो
जमानत पर है हम या रिहा हो चुके हैं,
वक्त रहते हमारे प्यार की सजाए सुनाया करो
क्या गुजरी है तुम पर वो तन्हा अंधेरी रातें,
कभी हमसे शिकवे शिकायत लगाया करो
तेरे संग होते है अकसर हम आवारगी में अव्वल,
कभी खयालों को हमारे छोड़ भी जाया करो
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