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चल उठ कुछ नया करते हैं,
खुद के दामन को फूलों से भरते हैं,
अक्सर उन्हें रोते ही देखा है,
जो लोग इंतजार में आहे भरते हैं
तू खुद में कितनी हसीन है,आ
खुदी से आगाज़ ए महोबबत करते हैं,
रूसवा होकर कोई क्या ही पाया है,
दुखी लोगो पर लोग अकसर हंसा करते हैं
तेरी खुशबू महका दे बगीचों को,
इत्र बनाने वाले तुझसे कितना डरते हैं,
तेरा सोनदरय चटका दे आइना भी,
आ इन आइनों को परदानशीन करते हैं
कौन ही दे पाया है किसी को राहत ए सुखन,
लोग खुद पर बेवजह गुरूर करते हैं,
हम तो खुद ही मोहब्बत का एक नाम है,
ज्यों अंजुम चांद को देख आहें भरते हैं
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