
Share0 Bookmarks 135 Reads1 Likes
निशब्द सा, श्वेत सा, तन गिरा अचेत सा,
मानव झुंड के समक्ष, ना सांसों को भेदता,
कुछ नये, कुछ गये, चेहरों की कतार को,
कुछ खड़े दलील करते, प्राणों पर इस वार को
सीने को दबा प्रयत्न करते,सांसों की एक आहट को,
मृत शरीर मात देता,जीने की घबराहट को,
नर बल की कटुता की, फिर इक दफा हुंकार हुई,
एक मां, बहन, बेटी जिंदगी से हार गई
ऐसे जाने कितनी नारीया प्राणों को हैं त्यागती,
मौत को गले लगा वो जिंदगी से भागती,
क्यूं नहीं हम इन्हें प्यार और सम्मान दें,
दहेज रूपी आपदा को जड़ से क्यूं न काट दें!
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments