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यूं छुप छुप जाओगे,
तो हमें कहां पाओगे,
हम तो हवा में महकते है जाना,
फिजाओं से हमको कैसे चुराओगे
शाखों पे पत्ते सरसराते है जैसे,
पायल की खनक को कैसे दबाओगे,
ये झूटी अदावत जो पाले हुए हो,
किसी दिन हारा सा खुद को पाओगे
मैं दरिया का बहता पानी बनी अब,
अपनी कश्ती को कैसे साहिल दिलाओगे,
अब न रुके ये कदम मेरे तुझ पर,
वो बिखरा आशिया कैसे सजाओगे
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