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छोटी सी जिंदगी में धड़कन सिमट रही है,
शाखो के सब्ज पत्ते धरती निगल रही है,
लक्ष्यों से भरी गागर, खुशियों से सिली चादर,
क्यूं छीन के प्रकृति प्राणों को छल रही है
वो भाई था किसी का, था किसी का जाया,
वो प्रेमी था किसी का, अब सब से हैं पराया,
ये क्रोध है शिवा का, महाकाल की है माया,
क्यूं आंखें एक मां की रूदाली हर रही है
वो सोया था खुशी से, बुन कर के कल के सपने,
ना तनिक भी था धोखा, ना फिर दिखेंगे अपने,
जिस जीव में थी सांसें, आज मृत वो पड़ा है,
भरी भीड़ में जवां एक, अर्थी निकल रही है
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