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ये समाज है प्यारे!
यहाँ लड़ना पड़ता है।
कहीं मौन की लड़ाई
कहीं बातों की बकबकाई
उबाई!
रुबाई!
इन्हीं रूढ़िवादी आडंबरों में सड़ना पड़ता है
ये समाज है प्यारे! ...........
चलने से काम नहीं चलेगा
इस मशीनी युग में
तो
भागम-भाग लगातार
बेलगाम
नहीं तो भीड़ में पिछड़ना पड़ता है
ये समाज है
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