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आज भी रोज़ वो सपनो में आता है।
सुकून तो इस बात का है,
हक़ीक़त में ना सही पर सपनों में,
वो मुझे देख मुस्कुराता है।
कभी नजरे झुकाता है,
कभी नजरे उठाता है।
और फिर एक नज़र में,
हज़ारो लफ्ज़ बयां कर जाता है।
इकरार तो करना चाहता है,
पर ना जाने क्यूं हिचकिचाता है।
और आखिरकार जैसे ही वो करीब आता है,
कमबख्त सपना ही टूट जाता है।।
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