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महफ़िल-ए-मोहब्बत में ज़बाँ से जाम छलकाने लगता हूं मैं,
अनजाने में हर किसी अनजान को आजमाने लगता हूं मैं.!!
पहली गलती हो जाती है मुझसे जल्दी- जल्दी में गलती से,
अपनों से ज्यादा परयों को गलती से अपनाने लगता हूं मैं.!!
दूसरी गलती कर जाता हूं फिर से एक बार इश्क में गलती से,
गली के हर-एक बेवफाओं पर अपना हक जतलाने लगता हूं मैं.!!
:~ #कुमारलक्ष्मीकांत
अनजाने में हर किसी अनजान को आजमाने लगता हूं मैं.!!
पहली गलती हो जाती है मुझसे जल्दी- जल्दी में गलती से,
अपनों से ज्यादा परयों को गलती से अपनाने लगता हूं मैं.!!
दूसरी गलती कर जाता हूं फिर से एक बार इश्क में गलती से,
गली के हर-एक बेवफाओं पर अपना हक जतलाने लगता हूं मैं.!!
:~ #कुमारलक्ष्मीकांत
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