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उसके होने से थी बहुत प्यारी हमको
जिंदगी बोझ लगने लगी है अब हमारी हमको
सुना था अधूरा इश्क़ एक बीमारी है
बस खा गई वही बीमारी हमको
अफसोस कैसा जो लुट गए मोहब्बत में
शिकस्त तो खुद ही दी है हमने करारी हमको
दिसंबर अच्छा था और वजह उसकी गरम सांसे थीं
ना रास आएगी सर्दी अबकी बारी हमको
रोटी, सिगरेट, शराब या हो मोहब्बत की
तलब बना देती है यारो भिखारी हमको
इसी मौजूँ पर...
कितने मिन्नतें की हमने रख के अना उसके कदमों में
तलब उसकी बना गई भिखारी हमको
उसकी बात, उसकी याद और हाथों में शराब
भा गई है गम की सवारी हमको
छोड़िए आप तकल्लुफ ना कीजिए मेरे हक में दुआ करके
अब तो बचाएगी बस मौत ही हमारी हमको
--पीयूष यादव
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