चिलमन's image
Share0 Bookmarks 57 Reads3 Likes
कहीं पर मुस्कुराते फूल,            
कहीं पर बरसते शोले।
कहीं पर छाई स्याह रात,
कहीं महकती सुबह की खिड़की कोई खोले।         
कहीं पर झुमते हैं बाग,          
कहीं पर डूबती बस्ती।          
कहीं पर गीत गाते भॅंवरें,          
कहीं पर बिलखती बच्ची।           
जहन में गूंजता रहा,              
अक्सर यही सवाल।
क्या सबका एक साथ उसको,           
आता नहीं ख्याल?          
उसी को पूॅंजते हैं सब,            
वही सबका सहारा है।            
हैं हम सभी उसके,           
वही तो एक हमारा है।         
बहुत मायूस हो एक शाम      
जब आसमान को गौर से देखा          
हुआ मालूम वजह क्या है            
खुदा के इस रवैये का।              
वही है पिता सबका,           
उसी की सारी यह धरती।            
नजर उसकी बराबर फिर         
हर जगह क्युं नहीं पड़ती।  
यही* (आसमान) करता है अलग 
उसको दो जहानों को          
इसी से छन के आता है, रहम           
इंसा और बेजबानों को।             
इसी ने ये बेगाना खेल                     
रच के रखा है।       
यही चिलमन है जो हमको
खुदा से ढँक के रखा है।
--पीयूष यादव


No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts