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कई सारी उलझनों में यूँही डूबा है ,
हर चर्चा में जिसने महफ़िल को लूटा है ,
है तैयार कुछ करके दिखाने मौका तो दीजिए,
है संस्कृति ऐसी हाल चाल से पहले प्रणाम लीजिए ,
घर छोड़ दिया घर के लिए कही राम या सीता तो नहीं ,
ढाल थाम लिया अपनों के लिए कही अर्जुन या द्रौपदी तो नहीं,
लड़ते रहते है खुदसे अन्तः मन की लड़ाई है ,
सुख से पहले पेट और घर चलाने की कमाई है ,
खाना न मिला हो पर मेट्रो या बसों के धके खाने है ,
समय का न होना बाकि तंगियों को ढकने के बहाने है ,
चीज़े बहुत सी भटकाने फुसलाने को भी है ,
जिम्मेदारियां खुदको सही रास्ते लाने को है ,
दिक्कते काट कर भी मुस्कुराते जी रहे है ,
सपनो को पूरा करना है इसीलिए तो जी रहे है ,
ऊपर लिखी पंक्तियाँ सभी सत्य है ,
इस देश के युवा वर्ग से सम्बंधित तथ्य है |
- पिंकी झा
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