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सुबह के नहीं नहीं रात के बजे है चार,
दुनिया के सोने का समय ,
फिर हम क्यों है जगे ,
क्या अलग है इस दुनिया से ,
नहीं है ऐसा तो नहीं ,
काम निपटा कर नींद में खोने ,
आराम से सोने ही तो आये थे ,
फिर नींद उड़ी कैसे ?
किस रास्ते इतनी दूर निकली ?
लेटे आँखे मुंदी ,
दिन बिता कैसे टटोला ,
कल ना ना आज क्या क्या करेंगे सोचा ,
लिस्ट मन में ही लिख डाली ,
फिर इंतज़ार था बस नींद का ,
करवट मैंने बदली संग ख्यालो ने भी ,
गलतिया अपनी सामने दौड़ते दिखी,
तेज़ी में कुचल देने की भ
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