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निंदिया रानी आएगी

pinki jhapinki jha September 2, 2021
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सुबह के नहीं नहीं रात के बजे है चार,

दुनिया के सोने का समय ,

फिर हम क्यों है जगे ,

क्या अलग है इस दुनिया से ,

नहीं है ऐसा तो नहीं ,

काम निपटा कर नींद में खोने ,

आराम से सोने ही तो आये थे ,

फिर नींद उड़ी कैसे ?

किस रास्ते इतनी दूर निकली ?

लेटे आँखे मुंदी ,

दिन बिता कैसे टटोला ,

कल ना ना आज क्या क्या करेंगे सोचा ,

लिस्ट मन में ही लिख डाली ,

फिर इंतज़ार था बस नींद का ,

करवट मैंने बदली संग ख्यालो ने भी ,

गलतिया अपनी सामने दौड़ते दिखी, 

तेज़ी में कुचल देने की भावना से दौड़ते ,

जल्दी करवट बदली मैंने ,

अपनी कोशिशे दिखी मुझे ,

छोटी से बड़ी होते ,

बीज से पेड़ होते ,

मुस्कुराई इठलाई ली जम्हाई ,

मन चल दिया दूसरी ओर ,

किसी ख्याल का अभी न पहरा ,

आँखों में सिर्फ नहीं खुदमे महसूस हो रहा अँधेरा है ,

अनकहे से भाव है ,

चल रहे जैसे नाव है ,

घाट किनारे की परवाह बगैर ,

छानते चलते शहर दर शहर ,

तूफ़ान लिए पर चुपी में ,

मैं बस खामोश इनके बीच ,

इसी इंतज़ार में की शायद ,

सूरज के साथ ही अब ,

निंदिया रानी आएगी |

- पिंकी झा 

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