
शिक्षकों का दिन है ,
उनकी है आज रात ,
होनी चाहिए बस उनकी बात ,
मौका है और दस्तूर भी ,
तो करलेते है उनको प्रणाम ,
जिनके भूल नहीं सकते नाम ,
रोशन करना है जिनका नाम ,
करके कई अनगिनत काम |
माता जननी है और प्रथम गुरु ,
प्रथम दिन से सिखलाना करती है शुरू ,
हो दूध पीना या करना दुविधाओं का दमन ,
हर मोड़पर खड़ी तैयार थी लिए अपना दामन ,
रोये तो आँसू पोछकर हौसले देने तैयार रही ,
अंधेरो में मेरी हाथो का मशाल रही ,
जीती लड़ाईया उनकी सीख बनी ढाल रही ,
छुटपन-बढ़पन ही नहीं जिंदगी उनकी बदौलत कमाल रही |
द्वितीय का रहा है सदा से थोड़ा कम मोल,
जानते है भले कहते न हो है वो कितने अनमोल ,
पिता रहे हमारी सबसे बड़ी पूंजी है ,
साथ वो है तभी तो ये आवाज़ गुंजी है ,
सख्त रहकर छुपाये कोमल ह्रदय ,
भूख और जरूरतों की आग से हमे बचाने ,
घर और प्रियजनों से न चाहकर भी दूर रहे ,
किसी किताब में लिखा नहीं जो सबक ,
नज़रो के सामने देखा है ,
पिता के जीवन से बहुत कुछ सीखा है |
ऐसा रहा न कोई विषय ,
जो पढ़ाये वो हम न सीखे ,
बार बार पूछकर समझनेवाले वो महान थे ,
नादानियों से भरे कभी बड़े कभी छोटे,
जितने भी सवाल थे ,
अध्यापक-अध्यापिकाएँ जवाब लिए हमेशा तैयार थे ,
ज्ञान अंक का हो या अक्षर का ,
हो इतिहास ,भूगोल, विज्ञान या ज्यामिति,
या हो अर्थशास्त्र,लेखाकर्म या राजनीति,
अज्ञान अँधेरे या मिटाया लगाकर सही रणनीति,
अथक प्रयासो को उनके नमन ,
अडिग रहे सीखने को चाहे उनपर जो बीती |
चर्चा हो शिक्षकों की और नाम उनका न ले हो नहीं सकता ,
जीवन से बड़ा शिक्षक इस धरती पर कोई हो नहीं सकता ,
बिना कलम किताब के जीवन ने जो सीखा दिया,
किसी के बस की नहीं ऐसे पाठ पढ़ा समझा गया ,
जो सीखता चला उसे सर्वोपरि बना दिया |
है सास्वत दंडवत प्रणाम सभी गुरुओं को ,
जाने अनजाने ज्ञान बाँटकर ,
उलझने सुलझाकर ,
पथ दिखाते रहे सुगम बनाते रहे जो जीवन को ,
जो कर गए हमारे लिए तूलना उसकी नहीं ,
बाँट पाए सीखा जो भी किसीको,
गुरु दक्षिणा हमारी होगी उनको यही |
- पिंकी झा
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