शिक्षकों का दिन है ,
उनकी है आज रात ,
होनी चाहिए बस उनकी बात ,
मौका है और दस्तूर भी ,
तो करलेते है उनको प्रणाम ,
जिनके भूल नहीं सकते नाम ,
रोशन करना है जिनका नाम ,
करके कई अनगिनत काम |
माता जननी है और प्रथम गुरु ,
प्रथम दिन से सिखलाना करती है शुरू ,
हो दूध पीना या करना दुविधाओं का दमन ,
हर मोड़पर खड़ी तैयार थी लिए अपना दामन ,
रोये तो आँसू पोछकर हौसले देने तैयार रही ,
अंधेरो में मेरी हाथो का मशाल रही ,
जीती लड़ाईया उनकी सीख बनी ढाल रही ,
छुटपन-बढ़पन ही नहीं जिंदगी उनकी बदौलत कमाल रही |
द्वितीय का रहा है सदा से थोड़ा कम मोल,
जानते है भले कहते न हो है वो कितने अनमोल ,
पिता रहे हमारी सबसे बड़ी पूंजी है ,
साथ वो है तभी तो ये आवाज़ गुंजी है ,
सख्त रहकर छुपाये कोमल ह्रदय ,
भूख और जरूरतों की आग से हमे बचाने ,
घर और प्रियजनों से न चाहकर भी दूर रहे ,
किसी किताब में लिखा नहीं जो सबक ,
नज़रो के सामने देखा है ,
पिता के जीवन से बहुत कुछ सीखा है |
ऐसा रहा न कोई विषय ,
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