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क्यों कदर वो आंसमा जमीन से मिलने को बेताब है,क्यों चाहकर भी बेमौसम ही बारिश हुई ,जब जमीन को था यूं उन बादलों की नमी को महसूस करना तो क्यों उन खुदा ने उन बादलों को बरसाना ना चाहा।

जब चाहकर भी वो नमी हम महसूस ना कर पाए जो उस खुदा ने हमारे लिए रहमत -ए - नाजीर को अदा की हो ऐसी रुखसत चाह कर भी मंजूर ना हुई,क्यों उस खुदा की रहमत उस नाचीज़ को मशरूफ लगी क्यों चाह कर भी उस ख़ुदा के नेक दिली क

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