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अपने सपनों को मार दो
और उनसे कहना की बाद
बाद में लेना जनम फिर से
कि जीने का मकसद हो कोई।
या सच की लोरी सुना के
सुला दो उनके ऐसे कि
जब आँख खुले तो
सपनों पे सच का अँधेरा न पड़े।
या फिर बेच दो उनको
कौड़ी भर दामों में
कि ढेर सारे सपने बेच कर
किराया निकल आये घर का।
कि सपने ज़िंदा रहे अगर,
साथ रहे, जागते रहे अगर,
कम्बखत यथार्थ से लगने लगेंगे,
और यथार्थ एक सपना लगेगा।
जिसके धीरे धीरे ख़तम होना का
इंतज़ार करोगे तुम
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