
अपने सपनों को मार दो
और उनसे कहना की बाद
बाद में लेना जनम फिर से
कि जीने का मकसद हो कोई।
या सच की लोरी सुना के
सुला दो उनके ऐसे कि
जब आँख खुले तो
सपनों पे सच का अँधेरा न पड़े।
या फिर बेच दो उनको
कौड़ी भर दामों में
कि ढेर सारे सपने बेच कर
किराया निकल आये घर का।
कि सपने ज़िंदा रहे अगर,
साथ रहे, जागते रहे अगर,
कम्बखत यथार्थ से लगने लगेंगे,
और यथार्थ एक सपना लगेगा।
जिसके धीरे धीरे ख़तम होना का
इंतज़ार करोगे तुम
कि फिर अगली रात
अपने सपने बो पाओ नए।
सपने और सच की उलझन में
कुछ ऐसे फंस जाओगे फिर,
कि सपने ही सच जैसे हो जाएंगे
सादे, नीरस, खोखले।
इसलिए मार दो अपने सपनो को,
या सुला दो सच की लोरी सुना कर,
या बेच दो अपने ढेर सारे सपने,
कि किराया निकल आये घर का।
या ताक़त है तुममें अगर
सच कि कर्कश रोशनी में
अपने सपनो को जागते, ज़िंदा, पास रखने की
तो जब अपने सपनों के घर में,
ख़्वाबों की रोटी और ख़यालों की सब्ज़ी पके,
बुला लेना मुझे भी,
मैं हौंसलों की मिठाई बाँध के ले आऊंगा।
- परीक्षित
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