
शत्रु को गले लगा लेना
निज आसन पर बैठा देना
यदि बात पिता की आ जाए
सिंहासन तक ठुकरा देना
है सर्वविदित यह अटल सत्य कि पशुता
और मनुजता में केवल विवेक का अंतर है
रावण बनना तो सरल है पर
श्री राम हो जाना दुष्कर है
सर्वस्व चला जाने पर भी अपशब्द एक न कहता है
निःस्तब्ध रात्रि में दर-दर वो पत्नी के साथ भटकता है
वंचित शोषित जो जहाँ मिले आलिंगन कर रो पड़ता है
बतलाओ यदि किसी और धरा ने ऐसा राजा देखा है
पर्याय दशानन पामर का इक यही सत्य उसके हक़ में
पर कर्म राम का तो मेरे दुर्लभ प्रश्नों का उत्तर है
रावण बनना तो सरल है पर
श्री राम हो जाना दुष्कर है
है धैर्य राम, है ओज राम मेरा राम जगत का वैभव है
मैं विमुख राम से हो जाऊं जीते जी यह कब संभव है
पर अगर कभी कुछ ऐसा हो मुझे राम में राम दिखें ही न
है विनती मैं जड़ हो जाऊं मुझको संसार दिखे ही न
हो नष्ट चित्त संदेह जिसे श्री राम चंद्र को लेकर है
ऐसे जीवन से तो प्रतीत होती मृत्यु श्रेयष्कर है
रावण बनना तो सरल है पर
श्री राम हो जाना दुष्कर है
सारा इतिहास खंगालोगे या
जतन कोटि अपना लोगे
मिल जायेंगे नृप कोटि तुम्हे
पर दूजा राम न पाओगे
है स्त्रोत याम के दीप्ति का वह
और वह ही श्रेष्ठ कलाधर है
रावण बनना तो सरल है पर
श्री राम हो जाना दुष्कर है ..
©PankazKaladhar
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