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वो लौ लपट सा दन दनाता भागता है,
धधकता हुआ तम तमाता सा झांकता है,
पास जाओ तो शेर सा थर थराता है,
कुछ बोलो तो गुर्राता है,
वो शक्स बड़ा अजीब है,
भावनाओं से गरीब है,
पर दिल के फिर भी करीब है,
आग- सा तम तमाता
शेर सा गुर्राता,
मेरे कदमों को बर्फ़ सा जमाता है
एक कदम भी आगे न बढ़ पाता है,
कश्मकश में हर दिन गुजर जाता है.....
स्वरचित् व मौलिक
Padmaja Raghav
धधकता हुआ तम तमाता सा झांकता है,
पास जाओ तो शेर सा थर थराता है,
कुछ बोलो तो गुर्राता है,
वो शक्स बड़ा अजीब है,
भावनाओं से गरीब है,
पर दिल के फिर भी करीब है,
आग- सा तम तमाता
शेर सा गुर्राता,
मेरे कदमों को बर्फ़ सा जमाता है
एक कदम भी आगे न बढ़ पाता है,
कश्मकश में हर दिन गुजर जाता है.....
स्वरचित् व मौलिक
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