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तपती दोपहरी हो या हो बारिश मूसलाधार,
तुम नहीं रुकते हे फसलों के सृजनहार।
हे कर्मठ चाहे हो तुम्हारे पैर नग्न,
चाहे फटे वस्त्र से ताक रहें हो थका हुआ तन।
बैलों के संग तुम
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तपती दोपहरी हो या हो बारिश मूसलाधार,
तुम नहीं रुकते हे फसलों के सृजनहार।
हे कर्मठ चाहे हो तुम्हारे पैर नग्न,
चाहे फटे वस्त्र से ताक रहें हो थका हुआ तन।
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