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तुम ढलते हो रोज और फिर नए बन के निकल आते हो,
उम्र जो ढली तो फिर हमें उसने वापस मुडके भी न देखा है।
तुम जब ढलते हो तो एक लाली फैला जाते हो,
ढलती उम्र की जुर्रियां क्या तुमने देखी है।
तुम अक्सर मुस्कुराते चांद तो क्षितिज में तन्हा छोड़ जाते हो,
ढलती उम्
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