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ये जो तुम्हारी हर जगह चेहरे चिपकाने की आदत है,
क्या बुत बन के चौक पे पड़े रहने को तबीयत इतनी मचलती है।
हुक्मरान हो या खुदा बनने की चाहत है,
क्या तुम्हारे नाम के साथ साथ सीरत भी बदलती है।
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