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एक अदद ज़िंदगी की ख़्वाहिश में
आ गए ज़िस्म की नुमाइश में
भटकते ही रहे हैं सारी उम्र
बंजारे कब रहे रिहाइश में
बदलनी है जिन्हें तक़दीर अपनी
लगे हैं ज़ोर-आजमाइश में
आपका ही भला है लगता है
सचमुच आप की सिफारिश में
वक्त कुछ दिन के बाद बदलेगा
अभी सितारे आपके हैं गर्दिश में
हमने मांगी थी मौत रब तुझसे
तूने दी ज़िंदगी ही बख़्शिश में
कब, किस का? मुरीद हो जाए
ये दिल रहता नहीं है बंदिश में
हासिल उम्मीद से अगर कम है
हर्ज क्या है? एक और कोशिश में
सब को सर्दी का डर सताता है, अब
कोई भींगता नहीं है बारिश में
मोहब्बत कीजिए“निवेदन” से
फायदा कुछ नहीं है रंजिश में
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