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कल्पना की आँच पर कविता बनाता
पत्थरों के मध्य से सरिता बहाता
कुंठित विस्मृत भाव को आवाज देकर
वेदना की भूमि में खुशियां उगाता
लेखनी से मौन को आवाज देता
अनकहे अनसुने की सुध लेता
चल रहा अविराम निज कर्तव्य पथ पर
प्रेम लेकर साथ में चढ़ धर्म रथ पर
बनकर प्रहरी सत्य की ज्योति फैलाता
कल्पना की आँच पर कविता बनाता
लेखनी है एक तपस्या साधना है
ज्ञान की पूजा है एक आराधना है
जो कलम को साध कर साधक बना है
स्याही से जिसने स्वर्णिम सच जना है
मन की ऊसर माटी को उर्वर बनाता
कल्पना की आँच पर कविता बनाता
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