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कल्पना की आँच पर कविता बनाता

पत्थरों के मध्य से सरिता बहाता

कुंठित विस्मृत भाव को आवाज देकर

वेदना की भूमि में खुशियां उगाता


लेखनी से मौन को आवाज देता

अनकहे अनसुने की सुध लेता

चल रहा अविराम निज कर्तव्य पथ पर

प्रेम लेकर साथ में चढ़ धर्म रथ पर

बनकर प्रहरी सत्

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