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मिला न ख़ुद सा मोतबर कोई
न हम-नशीं न हम-नज़र कोई
ख़ुदा तुम सा न कारीगर कोई
बा-हुनर कोई बे-हुनर कोई
तमाम उम्र सफ़र में रहा लेकिन
न मंज़िल मिली न हमसफ़र कोई
मैं एक ऐसे शहर में रहता था
जहां गली थी ना रहगुज़र कोई
खुदा यह कैसी है तेरी दुनिया
चश्म-ए-तर कोई खुश-नज़र कोई
बीमारी हो जो लाइलाज तो फ़िर
क्या करेगा चारागर कोई
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