Share0 Bookmarks 57401 Reads1 Likes
जिंदगी लग जाती है घर को घर बनाने में
वक्त पर लगता नहीं है तोड़ने जलाने में
हकीकत से जब भी वो जरा भी दूर जाता है
कभी देरी नहीं करता मैं उस को आईना दिखाने में
अंधेरा हो,अकेले हों नहीं हो दूर तक कोई
खुद को जलाना पड़ता है तब रोशनी बनाने में
भले दो चार दिन की है मगर यह जिंदगी है जिंदगी
बयां कैसे करें हम जिंदगी को मुख्तसर फसाने में
खुद में लाख कमियां है फिर भी बेफिक्री
Send Gift
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments