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जिंदगी लग जाती है घर को घर बनाने में
वक्त पर लगता नहीं है तोड़ने जलाने में
हकीकत से जब भी वो जरा भी दूर जाता है
कभी देरी नहीं करता मैं उस को आईना दिखाने में
अंधेरा हो,अकेले हों नहीं हो दूर तक कोई
खुद को जलाना पड़ता है तब रोशनी बनाने में
भले दो चार दिन की है मगर यह जिंदगी है जिंदगी
बयां कैसे करें हम जिंदगी को मुख्तसर फसाने में
खुद में लाख कमियां है फिर भी बेफिक्री सी है
मगर मशगूल हैं सब दूसरों की कमियां गिनाने में
हार जीत से अपनी है न खुश न मायूस कोई
सारी दुनिया लगी है पर औरों को हराने में
सच अकेला है बहुत बदनाम है गुमनाम है
झूठ है मशहूर बेहद आजकल जमाने में
हक की रोटियां देते हैं या एहसान करते हैं
मशरूफ हैं सब बस अपनी शोहरत बनाने में
यूं तो हम भी शायरी के हैं बहुत शौकीन मिश्र
लगती है मेहनत बहुत पर काफिया लगाने में
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