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जिंदगी लग जाती है घर को घर बनाने में
वक्त पर लगता नहीं है तोड़ने जलाने में
हकीकत से जब भी वो जरा भी दूर जाता है
कभी देरी नहीं करता मैं उस को आईना दिखाने में
अंधेरा हो,अकेले हों नहीं हो दूर तक कोई
खुद को जलाना पड़ता है तब रोशनी बनाने में
भले दो चार दिन की है मगर यह जिंदगी है जिंदगी
बयां कैसे करें हम जिंदगी को मुख्तसर फसाने में
खुद में लाख कमियां है फिर भी बेफिक्री
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