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इकरार कीजिए या इंकार कीजिए
जो कुछ भी कीजिए उसका इज़हार कीजिए
यूं तो हर किरदार की है ख़ासियत अपनी
मौजूं जो हो मगर वही किरदार कीजिए
गुरबत के मारे लोगों को रोटी तो दीजिए
रहमत जरा सी इन पर सरकार कीजिए
रखिए भी कुछ बचा कर ख़ुद में अपने लिए
ये ज़िंदगी है इसको नहीं अख़बार कीजिए
बांट सकते हैं अगर तो बांटिये मोहब्बतें
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