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चंद खुशियां अब तो मेरे नाम कर दे
या मुश्किलों की बारिशें तमाम कर दे
मेरी झोली में चंद सिक्के गिरा दे
या मुझे चौराहे पे नीलाम कर दे
मकबूलियत आसानी से मिलती नहीं है
शौक से तू अब मुझे बदनाम कर दे
अब छुपाने से नहीं छुपते मेरे गम
इससे अच्छा है इसे सरेआम कर दे
बेशर्त मुजरिम क्यों बना डाला है मुझको
मेरे सर अब तो कोई इल्जाम कर दे
शुरुआत तो अच्छी रही थी जिंदगी की
तू खुशनुमा सा अब मेरा अंजाम कर दे
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