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तन्हाई जब से पास बैठी है
मेरी ग़ज़ल उदास बैठी है
आप कहते हैं ज़िंदगी जिस को
सामने बद-हवास बैठी है
झूठ ने जेवरात पहने हैं
सच्चाई बे-लिबास बैठी है
खुशनसीबी भी बदनसीबी भी
मेरे आस-पास बैठी है
उठ तो जाता लेकिन मेरे पास
शख़्सियत कोई खास बैठी है
मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया
इसलिए माँ उपास बैठी है
होश में कैसे रहेगी ये दुनिया
लिए बोतल गिलास बैठी है
सरापा डूबा हुआ हूँ पानी में
फिर भी होठों पे प्यास बैठी है
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