तन्हाई जब से पास बैठी है
मेरी ग़ज़ल उदास बैठी है
आप कहते हैं ज़िंदगी जिस को
सामने बद-हवास बैठी है
झूठ ने जेवरात पहने हैं
सच्चाई बे-लिबास बैठी है
खुशनसीबी भी बदनसीबी भी
मेरे आस-पास बैठी है
उठ त
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