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रविवार की उस सुबह की याद
आज भी प्यारी लगती है
जब बारिश में भीगती हुई तुम
मेरे तीसरे माले वाले कमरे पर
अपनी भीगती हुई चुनरी को
गीले बालों के साथ
झाड़ते हुए, तेज कदमों से,
सीढ़ी चढ़ते हुए आती थीं।
तुम्हारे आने के साथ ही
मेरा कमरा तुम्हारी महक से,
तुम्हारे अक्स से भर जाता था।
तुम्हारे आने की आहट से
हिलते थे दरवाजे, हल्के से
बताते थे कि आ चुकी हो तुम।
घुमावदार सीढ़ी के सहारे
तीसरे माले तक का सफर
तुम्हारा आते ही, वो सवाल,
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