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अधूरे चांद को देखकर
कभी-कभी लगता है,
रिश्ते भी अक्सर, ऐसे ही अधूरे रहते हैं?
और फिर कभी कभार, यूं ही,
हो जाते हैं पूरे,
उस चांद की तरह।
फिर अचानक ही,
जिंदगी के पूरे अंबर पर,
वो अलग दिखाई देते हैं,
रिश्ते....
फिर शुरू होता है, वो सफर
रिश्तों को बचाने का।
रिश्तों को बचाने और संवारने की आस
अंबर पर पूरे चांद को सजाने का ख्वाब,
कभी चांद पूरा, तो कभी रिश्ते, और
कभी रिश्ते अधूरे, तो कभी चांद।
इसी में फंस कर रह जाता है इंसान
और अधूरा हो जाता है
रिश्तों के साथ,
वो 'चांद', एक बार फिर से।
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