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शाम को साहिलों पर,
जब पानी भी ठहर सा जाता है,
मुझे सच, जैसे एक कागज़ नजर आता है...
जिस पर,
मैं उकेरता रहता हूं,
तेरे अनगिनत चित्र...
~ नितिन कुमार हरित
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शाम को साहिलों पर,
जब पानी भी ठहर सा जाता है,
मुझे सच, जैसे एक कागज़ नजर आता है...
जिस पर,
मैं उकेरता रहता हूं,
तेरे अनगिनत चित्र...
~ नितिन कुमार हरित
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