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सुनो ! प्रेम का एक जहां चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
धवल चांदनी के उतरने से पहले,
सुनो पंखुड़ी के बिखरने से पहले,
चमकते ये जुगनू कहीं थक ना जाएं,
नई भोर सजने संवरने से पहले,
मैं इन सबको अपना गवाह चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
हृदय में कई दामिनी संग डोलें,
अधर मौन हों पर, नयन साथ बोलें,
नहीं अब रहें तुच्छ देहों के नाते,
सजग आत्मा, आत्मा संग हो ले,
सुनो मैं यही, अमरता चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
ना हारे कोई, ना किसी की ही जय हो,
जहां प्रेम में, प्रेम का ही विलय हो,
वहीं सुर्भियों से सुगंधित निकेतन,
खुले द्वार का
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