
सुनो ! प्रेम का एक जहां चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
धवल चांदनी के उतरने से पहले,
सुनो पंखुड़ी के बिखरने से पहले,
चमकते ये जुगनू कहीं थक ना जाएं,
नई भोर सजने संवरने से पहले,
मैं इन सबको अपना गवाह चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
हृदय में कई दामिनी संग डोलें,
अधर मौन हों पर, नयन साथ बोलें,
नहीं अब रहें तुच्छ देहों के नाते,
सजग आत्मा, आत्मा संग हो ले,
सुनो मैं यही, अमरता चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
ना हारे कोई, ना किसी की ही जय हो,
जहां प्रेम में, प्रेम का ही विलय हो,
वहीं सुर्भियों से सुगंधित निकेतन,
खुले द्वार का एक छोटा निलय हो,
मेरे संग तुम्हें भी वहां चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
कल कल ध्वनि आये शीतल से जल की,
कई पंक्तियां हों, खिले से कमल की,
ना सुध बुध रहे कोई बीते समय की,
जो ले ले कोई सुध वहां एक पल की,
वहींं पेड़ पर घोंसला चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
ये संसार अपनी, सदा पा ना जाए,
कहीं दौड़ता, रौंदता आ ना जाए,
इसे भूख लगती है, सपनों की अक्सर,
सुनो अपने सपने कहीं खा ना जाए,
मैं सच हों सभी, कल्पना चाहता हूं,
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।
कहूं तुमसे कैसे, मैं क्या चाहता हूं।।
- नितिन कुमार हरित
Insta/fb : @aaina.nkharit
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