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रे प्राणी, बोल बड़े ना बोल,
इस पल है, उस पल ना जीवन, देख तो आंखें खोल।
बोल, बड़े ना बोल।
झूठ के रिश्ते, झूठ के नाते, झूठ ही पीते, झूठ ही खाते,
जीवन सारा झोल,
बोल, बड़े ना बोल।
शून्य से चलकर, शून्य को जाए, कैसे कोई छोर बताए,
रस्ता तेरा गोल,
बोल, बड़े ना बोल।
काया, माया सब ढह जाए, कहा कभी जो, मिट ना पाए,
तोल सके तो तोल,
बोल, बड़े ना बोल।
एक बर्तन जैसा तू आया, तली कोई लेकिन ना पाया,
कौन लगाए मोल,
बोल, बड़े ना बोल।
~ नितिन कुमार हरित
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